सकारात्मक शब्दों का प्रयोग ही आपके तनाव से निकलने का सूत्र है

इन दिनों प्रबंधन,संस्था से जुड़े लोगों से यदि पूछें कि आपको सबसे ज्यादा तनाव किस बात का है? तो जवाब होगा टारगेट का. पुराणों में वर्णित एक राक्षस को वरदान था कि उसकी रक्त की बूंदें धरती पर गिरेंगी तो और बड़ी मात्रा में रक्त बढ़ जाएगा, इसीलिए देवी ने संहार करते समय उसके रक्त को पी लिया.
आजकल टारगेट इसी तरह हैं. सभी कहते हैं एक लक्ष्य पूरा करो तो अगली बार उसमें और अधिक जुड़ जाता है. कुछ तो इतने दबाव में आ गए हैं कि डिप्रेशन में चले गए अथवा दूसरी बीमारियां लग गईं. यह तय है कि लक्ष्य में बढ़ोतरी खत्म नहीं होगी. जो किया जा सकता है, कम से कम वह तो करें. वह है अपनी सुरक्षा. बढ़ते हुए लक्ष्य तक पहुंचना है, लेकिन खुद का नुकसान न हो जाए यह सावधानी भी रखनी होगी. मेरे प्रिय दोस्त आनंदजी ने एक दिन कहा की आप लिखते समय सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करे यह आपके सकारात्मक भाव को ही नहीं आपके सकारात्मक व्यक्तित्व को भी दर्शता है . नियम बना लें कि सुबह उठने, घर से निकलने, वापस घर आने पर और रात को सोते समय कुछ सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करते रहेंगे. ऐसे शब्द जिनमें आशा, आनंद, विजय की कामना, जीत की जि़द जैसे भाव हों. कुछ लोग तो घर से निकलते समय काम के दबाव के कारण कहते हैं- आज फिर मरेंगे. ऐसे ही जब थके-मांदे घर आते हैं तो कहते हैं- आज भी निपट गए.
धीरे-धीरे येे शब्द सोच बन जाते हैं, जिससे परेशानियां बढ़ जाती हैं. हमारे यहां बहुत से ऐसे मंत्र, चौपाइयां, महापुरुषों-फकीरों के आदर्श वाक्य हैं, जिन्हें इन चार समय पर दोहराया जा सकता है. आप पाएंगे आपकी मानसिकता मेें परिवर्तन आया और सोचने लगेंगे कि ‘क्या हुआ है?’ इसे छोड़ें और ‘ऐसा भी कुछ हो सकता है’ इस पर सोचें. भगवान ने मनुष्य बनाकर आप पर भरोसा किया है. आप उस पर भरोसा करके देखिए, आपका श्रेष्ठ आपको सहसिध्द करेंगा.

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