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अगर आप निष्कर्ष नही बनते है तो आपके मन के दरवाजे बंद नहीं होंगे .

सुस्ती या तो भोजन या विचारों के अधिक मात्रा में सेवन करने से आती है. शायद आपके सोचे की विचारों के अधिक सेवन से आलस कैसे आएगा हालांकि हर कोई यह तो समझ सकता है कि भोजन के अधिक सेवन से जरूर सुस्ती आती है. अगर विचार आपको खा रहे हैं तो आप देखेंगे कि आप बिस्तर से बाहर ही नहीं आना चाहेंगे.

मैं विचार प्रक्रिया की बात नहीं कर रहा. मैं विचारों के ज्यादा सेवन की बात कर रहा हूं.जिसका मतलब है विचार लगातार बह रहे. बिना आप के प्रयास के ,बिना आपके ध्यान के, बिना आपके इरादे के जब ऐसा हो जाता है,तब आप देखेंगे कि स्वाभाविक रूप से आप भोतिक गतिविधियों से बचना चाहिएगे और जब एक सीमा से परे चला जाता है. अब आपके विचार आप पूरी तरह से कब्जा कर लेते हैं. चिकित्सा विज्ञान में इस भदे नाम दिए जाते हैं. यह महत्वपूर्ण है, कि भोजन में और अंतहीन विचारो की गति में एक तरह का सयम होना चाहिए. चेतना से सोचना या बस विचारों के सहारे जीवन जीना यह दो बहुत अलग चीज है यह दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई है. बहुत सारे लोगों को इन में फर्क पता नहीं है, और इस वजह से जो कीमत मानवता चुका रही है वह उचित नहीं है.जो निष्कर्ष आप अपने मन में निकालते हैं वे जीवन को अनुभव करने की आपकी क्षमता को गंभीर रूप से कम कर देते है. जितने ठोस आपके निष्कर्ष होंगे उतना ही ज्यादा आप उनके आधार पर अपनी पहचान बनाई और भी ज्यादा आपको अपनी मानसिक सच्चाई सच्चाई लगने लगेगी.लगभग 90% इन्सानि दुःख यही है.

आप अपने मानसिक नाटक को सच्चाई समझने की भूल कर बैठते हैं. आपका नाटक है.आप इसके साथ जैसे चाहे खेल सकते हैं. अगर आप इस नाटक के अच्छे निर्देशक हैं तो आप जैसा चाहे वैसा बना लेंगे.यही अस्तित्व की सच्चाई है.यह कितनी सुंदर है. ज्यादातर लोग अपने मन में जीना चुनते हैं क्योंकि उन्होंने ठोस निष्कर्ष बनाएं है .और अब उनके लिए यह विकल्प ही नहीं रहा है.उन्हें कहां जीना है .अब समय है अप इस धरती पर जियें इस सृष्टि की सुंदरता और इस सृष्टि में सृष्टा की उपस्थिति की भी अनुभूति की जिए श्रृष्टि की हर पहलू पर .बस पर्याप्त ध्यान दीजिए. और आप सृष्टि के स्रोत की उपस्थिति को उसमें देखेंगे आपको यह अनुभव करने की जरूरत हैं.मानसिक नाटक आप का बनाया हुआ है जो अस्तित्व का नाटक यहां हो रहा है उसकी तुलना में मानसिक नाटक बहुत छोटा है. आप समय है कि आप इस का आनंद ले .यह मुझे लगता है की आप अपने ही मन की कैद से बाहर निकले और सृष्टि की सुंदरता को जाने. बुनियादी चीज सबसे मौलिक पहलू जिसका आपको ध्यान रखने की जरूरत है वह यह है कि आप आपने निष्कर्ष मत बनाइए. अगर आप निष्कर्ष नही बनते है तो आपके मन के दरवाजे बंद नहीं होंगे .

S Pravin

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